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जहां एक ओर पूरे देश गर्मी की मार झेल रहा है वहीं कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां अभी भी ठंडी ठंडी हवाएं और झीमी झीमी बारिश मन को लुभा रही है ,ये स्थान है अगस्त्यमुनि जो कि उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में स्तिथ है ,हालांकि आज यहां पलायन के चलते इसके आस पास के गाउँ में केवल एक दो परिवार ही रहते हैं पर इस भीषण गर्मी की तपन में ये स्थान किसी स्वर्ग से कम नहीं।

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कौशलपुर (क्वल) kaushalpur (basukedar)

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कौशलपुर क्रौंच पर्वत(कार्तिक स्वामी) के सामने बसा एक सुंदर गाँव  जिसे पहले  क्वल के नाम से जाना जाता था, गाँव उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है,जिसके ठीक सामने क्रौंच प...

कुमाऊं का घुघुतिया त्योहार,

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कुमाऊं का घुघुतिया त्योहार, " उत्तरायनी" यानी घुघुतिया त्योहार उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं में मकर संक्रांति पर 'घुघुतिया' के नाम एक त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार की अपनी अलग ही पहचान है। त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है। बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलाते हैं। Story behind ghugutiya festival of kumaun  उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं में मकर संक्रांति पर 'घुघुतिया' के नाम एक त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार की अपनी अलग ही पहचान है। त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है। बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलाकर कहते हैं- 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'। इस त्योहार के संबंध में एक प्रचलित कथा के अनुसार बात उन दिनों की है, जब कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा।    एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नीक बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। बाघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भयचंद पड़ा। निर...

त्रियुगीनारायण (triyuginarayan) सिद्ध पीठ

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त्रियुगीनारायण जहाँ संपन्न हुआ शिव व् पार्वती का विवाह- त्रियुगीनारायण मंदिर, मंदाकिनी एवं सोनगंगा नदियों के संगम, सोनप्रयाग से 13 किलोमीटर दूर 1,980 मीटर  की ऊँचाई पर उत्तराखंड के  रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगिनरायण गांव में स्थित है। इस मंदिर को अखण्ड धुनी मंदिर भी कहा जाता है।त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में वेदों में उल्लेख भी मिलता है कि यह मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है. लोगों में आस्था है कि यह मंदिर आदि शंकराचार्य द्वारा निर्मित किया गया। इस  मंदिर की बनावट  केदारनाथ मंदिर से मिलती -जुलती है। मान्यता है कि जब भगवान् शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया था , उस समय यह ‘हिमवत’ की राजधानी हुआ करती थी। त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में एक अद्भुत तथ्य है कि यहाँ जिस हवन कुण्ड की अग्नि को साक्षी मानकर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था वह अभी भी प्रज्ज्वलित है। इस पवित्र स्थल के आस-पास रुद्र कुण्ड, विष्णु कुण्ड और ब्रह्म कुण्ड भी हैं। सरस्वती कुण्ड इन तीनों कुण्डों का मुख्य स्त्रोत है। कहते हैं कि इस कुण्ड का पानी भगवान् विष्णु की नाभि से निकला है। माना जाता है कि इस कुंड...

meru uttarakhand

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